ब्रह्मा विद्या के आकांक्षी, वैदिक युग के तेजस्वी ऋषि बालक नचिकेता राजा वाजश्रवा के पुत्र थे पिता द्वारा आयोजित विश्वजीत यज्ञ के अंत में जब वाजश्रव अपने अधिकार क्षेत्र में उपलब्ध समस्त धन का दान कर रहे थे | तब नचिकेता ने दान में दी जाने बाली बूढी गायों को देख, आपत्ति दर्ज की और अपने पिता से आग्रह किया, कि मैं भी आपके अधिकृत हूँ अतएव मेरा भी दान कर दीजिये | बारम्बार अपनी बात को दोहराने के पीछे ऋषि बालक कि मंशा अपने पिता का ध्यान इस ओर आकृष्ट करवाना था, कि दान में उपयोगी वस्तुओं का दान किया जाना चाहिए न कि व्यर्थ कि वस्तुओं का, कारण बूढी गायें किसी पर बोझ बनने के अतिरिक्त और कुछ न कर पाती |
ऋषि बालक के रोकने से रूष्ट राजा वाजश्रव ने कहा – “जा तुझे यम को दान किया ” | तत्काल बालक यमलोक पहुंचे और तीन दिनों तक यम द्वार पर यमराज की प्रतीक्षा की | आगमन उपरान्त यमराज ने उन्हें तीन वरदान मांगने को कहा, जिस पर नचिकेता ने अपनी अल्पायु में ही आत्मविद्या के अंतर्गत “मृतु के उपरान्त क्या ?” जैसे प्रश्नों की जिज्ञासा प्रकट की और भौतिक वस्तुओं को त्यागकर सत्य जानकार ही संतुष्ट हुए | ऐसे जिज्ञासु एवं मुमुक्षु ऋषि बालक के नाम से जानी जाने बाली इस संस्था का मुख्या लक्ष्य सत्य के मार्ग पर प्रशस्त होना है |